प्रेम पुनः लौटता है
जो जाना चाहे उसे जाने दो
रोक कर या टोक कर
किसी के मार्ग का पत्थर मत बनो
तुम भी जीवन पथ पर अपनी गति से चलो
कोई तुम्हारे बिना चले तो उसे चलने दो
जिसके मन में न हो कोई भाव
उसके अभाव में जीवन की उपयोगिता कम मत करो
जो नहीं रहना चाहता
उसे रोकने से कुछ नहीं मिलेगा
जो नहीं स्वीकारे तुम्हरा प्रेम निवेदन
उसकी अस्वीकर्यता को तुम स्वीकारो
प्रेम तो वो बंधन है जिसमे बंधने से
दो ह्रदय एक साथ सांस लेते है
प्रेम किसी जाने वाले में ढूंढोगे
तो सिर्फ तुम्हें दुःख ही मिलेगा
प्रेम तो जीवन में पुनः लौटता ही है
किसी और रूप में
किसी और वेश में
बस उसे सही समय पर पहचानो
जो चला गया उसे जाने दो