प्रेम पर शब्दाडंबर लेखकों का / MUSAFIR BAITHA
अमृता प्रीतम कहीं लिखती हैं, “स्त्री तो ख़ुद डूब जाने को तैयार रहती है, समदंर अगर उसकी पसंद का हो!”
अमृता प्रीतम का यह कथन ग़लत है! सबसे पहले यह कि स्त्रियों को डूबने का पात्र समझना और किसी को, विपरीत को डुबा सकने में सक्षम समंदर जैसा विशाल अटाव का सामान, इस रूपक में ही विसंगति है।
दूसरी बात। अगर इस तुलनात्मकता को सही माने तो भी हद से हद स्वानुभव हो सकता है जबकि उन्होंने इस बात को सर्वजनीन कथन या सत्य सा बना कर प्रस्तुत किया है।
तीसरी बात। दूसरी तरफ से भी तो यह भी सत्य तो हो सकता है कि समंदर उस स्त्री का ही अपने में डूबना स्वीकार करता होगा जो उसकी पसंद की हो!
चौथी बात। प्यार में डूबना और समंदर में डूबना एक ही नहीं है।
समंदर में डूब कर हम जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं जबकि प्यार में डूबकर हम नई जिंदगी पाते हैं।