प्रेम – पर्व
चांदनी की रात ओढे
तारों को उसमें पिरोए
झुम कर उतरे कदम
खिल गए हैं फूल सारे।
रात की रानी खिली
है मंद मुस्काती चमेली
झूम कर तितली जो डोली
हंस पड़ी मदहोश बेली।
भर कदम एहसास कर लें
और निश्चल सांस भर लें
प्राण- प्रण की नेह डोली
दूर इठलाती नवेली।
सुर सुलभ संगीत मन के
करके भौंरे – सी मनमानी
बन पराग स्पर्श कर लूं
प्रेम की अद्भुत निशानी।
अनिल कुमार श्रीवास्तव
29.7.2019