प्रेम परिंदे उड़ जा रे
****** प्रेम परिंदे उड़ जा रे ******
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उड़ भी जा रे प्रेम परिंदे , उड़ जा रे
दे जा कर संदेश परिंदे , उड़ जा रे
प्रेम पाखी पंख पसारे नीले अंबर में
कर जाकर प्रेमवर्षण परिंदे,उड़ जा रे
पपीहा देखता राह, मेघ कब बरसेंगे
जा कर स्नेह बरसात परिंदे,उड़ जा रे
नफरत का खंजर घोंप रहे हैं सीने में
दे दे नेह की सौगात परिंदे, उड़ जा रे
रिश्तों का ताना बाना भी बिखर गया
तिनका तिनका जोड़ परिंदे,उड़ जा रे
अहंकार, क्रोध ,लोभ प्रेम निगल गया
मोह से कर शुरुआत परिंदे, उड़ जा रे
मनसीरत बार बार समझाए सुन जन
मन में है घोर क्रंदन परिंदे, उड़ जा रे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)