प्रेम परस्पर करें हम सभी
प्रेम परस्पर करें हम सभी, खींचें नहीं किसी की टाॅंग।
आज समय की यही जरूरत, और यही है युग की माॅंग।।
प्रेमाश्रयी भक्ति से बढ़कर, भक्ति नहीं है कोई अन्य।
प्रेम करें हम परमात्मा से, जीवन हो जाएगा धन्य।।
परमात्मा बैठा जन-जन में, नहीं किसी से किंचित दूर।
आओ उसको पहचानें हम, उससे प्यार करें भरपूर।।
सचर-अचर में विद्यमान वह, उसकी ही है सारी सृष्टि।
हम उसको पहचान सकेंगे, जब वह हमको दे दे दृष्टि।।
दृष्टि प्राप्ति के लिए प्रार्थना, करें, करें हम उसको याद।
वह प्रसन्न हो जाएगा तो, आएगा जीवन में स्वाद।।
कोई स्वाद न अन्य किसी का, उसके ही हैं स्वाद समस्त।
विद्या- विनय- विभूति- चातुरी, हर वरदान उसी के हस्त।।
आओ उसको माथ नवाएं, पाएं हम उससे वरदान।
हम न भले पहचानें उसको, वह हमको लेगा पहचान।।
वही पुरस्कृत करता सबको, वह ही करता दंड प्रदान।
हमें चाहिए नित्य नियम से, गाएं हम उसका गुणगान।।
वही प्रेरणा देकर हमसे, करवाएगा कर्म अकूत।
हम विचरेंगे अखिल भुवन में, बन उस जगदीश्वर के दूत।।
हम विजयी – दिग्विजयी होंगे, फहराएंगे यश का केतु।
सार्थक यत्न सदैव करेंगे, हम सारी नरता के हेतु।।
सतयुग लाने के प्रयास में, चलो बटाएं उसका हाथ।
सबको दें प्रेरणा अहर्निश, आओ माॅंगें सबका साथ।।
वह प्रेरणा भरेगा सबमें, वह है सब नाथों का नाथ।
आओ हम सब एक साथ मिल, उसे झुकाएं अपना माथ।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी