प्रेम पथ
Dr Arun Kumar shastri
एक अबोध बालक अरूण अतृप्त
सद्भावनाओं का अगर संगम न होता
जानती हो ना सखी ये
मानव मन फिर कितना कुंठित होता ।।
देह से परे यदि प्रेम का कोई मतलब ना होता
जानती हो सखी ये
इस विश्व में जीवन कितना दुर्लभ होता ।।
भावनाओं को देकर तिलांजलि क्या कभी
पुष्प कोई है खिला
किसी के प्रेम ने उन पौधों को यदि दिल से सींचा न होता ।।
मृतिका को जल में भिगोकर साकार किया जाता है
तब कही कोई आकार दिया जाता है ।।
उसी जल को फिर यदि वायु ने अवशोषित न किया होता ।।
जानती हो ना सखी, ये
सृजन कितना कोमल होता कितना क्षण भंगुर होता ।।
आतताइयों ने अनगिनत घरों को रौंद डाला एक ही पल में
ऐसे दावानल की कोख से कोई महावीर क्या जन्मा होता ।।
यदि किसी ने छत्रसाल को शस्त्र और शास्त्र दोनों में
पोषित पल्लवित पुष्पित शिक्षित ना किया होता ।।
विपदाएँ ना आएं ये तो मुमकिन ही नहीं है सखी
यदि तूने मैने आपस में इनसे आजन्म लड़ना न सीखा होता ।।
सद्भावनाओं का अगर संगम न होता
जानती हो ना सखी ये
मानव मन फिर कितना कुंठित होता ।।
देह से परे यदि प्रेम का कोई मतलब ना होता
जानती हो सखी ये
इस विश्व में जीवन कितना दुर्लभ होता ।।