प्रेम पथ पर
* गीतिका *
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प्रेम पथ पर जो कदम आगे बढ़ाए थे कभी।
हो गए क्यों आज डगमग जोश खाए थे कभी।
स्वप्न से भरपूर थे जो आज हैं सूने नयन,
स्नेह के सागर छलकते भी बहाए थे कभी।
होंठ सुन्दर पंखुरी से आज क्यों रसहीन हैं,
सुर्ख आभा युक्त मादक मुस्कुराए थे कभी।
आज क्यों हर व्यक्ति उनसे दूर होता जा रहा,
क्या समय था हर नजर को खूब भाए थे कभी।
चढ़ गए क्यों भेंट मौसम की महकते फूल सब।
रेशमी जुल्फों घनी में जो सजाए थे कभी।
क्यों भुलाए जा रहे हैं गीत सब चाहत भरे,
प्यार के सुन्दर पलों में गुनगुनाए थे कभी।
लौट कर आता नहीं जो वक्त निकला हाथ से,
लाभ कहने का न कुछ सपने सजाए थे कभी।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी, हिमाचल प्रदेश
(जुलाई, २०१८)