प्रेम पथिक
************* प्रेम पथिक **************
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प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर मेरे साथ चलो
विनती मेरी तुम करो स्वीकार , मेरे साथ चलो
मैं प्यासी चातक सी धोखे खाती प्रेम की राहों में
थक हार कर सो जाना चाहती हूँ तेरी बाहों में
तुम मेरे संग निज हाथ पाँव पसार,मेरे साथ चलो
प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर मेरे साथ चलो
जब तुम हो मेरे साथ,मैं खुश हो चलूं पकड़ हाथ
बातें जो बन जाएं जज्बात,हम हों जाए एक साथ
आँसुओं की हो जाए जब बरसात, मेरे साथ चलो
प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर,मेरे साथ चलो
मीरा सी बनके मैं भटकूँ कान्हां की प्रेम गलियों में
अब तक मुझे मिले नहीं जैसे कान्हां रंगरलियों में
तुम्हीं में है राधा के कृष्ण जैसी बात,मेरे साथ चलो
प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर ,मेरे साथ चलो
जब सुंदर तन ढ़ाँचा बन जाए वीरानी सी राहों सा
आँखों का जादू फीका जैसे नीर सूखे झीलों का
अंजुरी भर कर दो घूंट पिला कर, मेरे साथ चलो
प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर,मेरे साथ चलो
मनसीरत तरसती है तेरे अनुराग भरे सानिध्य को
मेरा विरह वैरागी मन बहुत तरस रहा आराध्य को
सीने से लगा,दे के चित को आराम,मेरे साथ चलो
प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर,मेरे साथ चलो
प्रेम पथिक प्रेम पथ पर पग धर,मेरे साथ चलो
विनती मेरी तुम करो स्वीकार, मेरे साथ चलो
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली ( कैथल)