प्रेम धन
प्रेम धन
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प्रेम अनमोल है
प्रेम से बड़ा धन नहीं
प्रेम से बड़ी शक्ति नहीं
प्रेम निराकार है,
प्रेम परिपूर्ण है।
प्रेम भावना है
प्रेम सम्मान है,
प्रेम बाँटिए
फिर प्रेम का
आयाम देखिए।
प्रेम बंधन मुक्त
प्रेम के प्रकार बहुत हैं
प्रेम किसी से भी हो सकता है,
प्रेम कोई भी कर सकता है।
इंसान ही नहीं
पशु पक्षी, पेड़ पौधे,
सभी जीव जंतु
प्रेम का रस पान करते हैं
आनंद लेते हैं,
आप भी किसी से
प्रेम करके तो देखिए,
फिर देखिए,
प्रेम धन को महसूस करिए
प्रेम के सागर में
गोते तो लगाइए,
आप खो जायेंगे,
प्रेम धन के बिना
रह नहीं पायेंगे।
● सुधीर श्रीवास्तव