प्रेम दीवानी
दरस दीवानी मीरा पागल ज़हर का प्याला पी गई।
लेकर ज़ुबाँ पर नाम कान्हा का पल सुनहरे जी गई।।
सुन कर मुरलिया की धुन गोपियाँ दौड़ी चली आती थीं।
मीरा हो या हो राधा कान्हा की मुरलिया सबको भाती थी।।
ब्रज की माटी लगती प्यारी ब्रजवासी हूँ मैं कहता शान से।
चंदन का टीका लगा माथ पर विचरण करता अभिमान से।।
आओ एक बार यहां ब्रज में गोवर्धन बरसाना पुकार रहा।
वृन्दावन की कुंज गली में छिप कर कान्हा सबको निहार रहा।।