ज्ञान-दीपक
सूर्य डरता ना कभी भी बदलियों के राज से।
कुछ समय तक छिपे पर वह पुनि उगेगा नाज से।
मग के पत्थर रोक सकते न कभी आलोक-डग।
ज्ञान-दीपक जगमगाते हर्ष बन ऋतुराज से।
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✓इस मुक्तक को मेरी कृति “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” में भी पढ़ा जा सकता है।
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बृजेश कुमार नायक