प्रेम की राह पर-3
नवपाषाण काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण झण्ड उड़ाते हुए टोन्स नदी के किनारे मिला था, जिसे लेन्मेसुरिअर ने 1860 में प्राप्त किया था।तो उसे झण्ड का परम लाभ मिला। वह भी झण्डदार हो गया।इससे पूर्व में बताते चलें कि इस युग की प्राचीन बस्ती पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त, जहाँ के लोगों की झण्ड वर्तमान में पाकिस्तानी हुक़ूमत जब चाहे तब टपका के उड़ा देती है, के मेहरगढ़ में स्थित हैं जहाँ कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य झण्ड उड़ाने को प्राप्त हो जाते हैं।और फिर रही बात गुफ़्फ़कराल और बुर्जहोम की जहाँ गर्तावास में तब के मानव को अनेक प्रकार के मृदभांड,प्रस्तर एवं हड्डी के अनेक औजारों के साथ झण्ड उड़ाते हुए दफ़न कर दिया गया।इस झण्डात्मक आख्यान में यह बताना जरूरी है कि उन बुर्जहोम में कुत्तों को मालिक के साथ दफ़नाने की बात कही गई है।तो झण्ड यहाँ कुछ ऐसी उड़ती है कि उनको जिन्दा दफनाया जाता था या मुर्दा। यह अर्द्ध शोधित भावना से प्रेरित झण्ड है।और भारत का बच्चा बच्चा इस झण्डशास्त्र को जानता है कि भारत के प्राचीन इतिहास की नवीनता लिए हुए कितनी भी खोज हो जाए,परन्तु भारतीय इतिहास का मानक ग्यारहवीं और बारहवीं कीअर्द्धप्राचीन(यहाँ प्राचीन शब्द की झण्ड नहीं उड़ानी क्यों कि यह पन्द्रह साल पहले की ही तो बात है) और नवीन NCERT की अद्भुत अलंकृत क़िताबे हर समय मुस्कुरा कर यह कहती हुई झण्ड उड़ाती रहती हैं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा का यशस्वी मार्ग,हुँ, हम से अर्थात हमी से होकर जाता है।नहीं तो तुम्हारी उड़ जाए, महाझण्ड। क्या पता।और अन्य किताबें तो हमारी बहिनें हैं, तो उनसे तो हम कह ही देंगे झण्ड उड़ाने की। फिर वह जमाने भर में चिल्लाएँगी झण्ड और झण्ड। और गाड़ देंगी झंडा।
अब आते हैं प्रसंग पर,हाँ,बात हो रही थी जिन्दा या मुर्दा दफ़नाने की,इस विषय पर रोमिला थापर और रामशरण शर्मा अपनी अपनी झण्ड उड़ाते हैं।क्योंकि की एक की तो शादी न हुई तो उसका दिमाग़ फिरकी लेते हुए झण्ड उड़ाता है और शर्मा जी की कुछ पता नहीं कि उनके बच्चे हैं या नहीं। शायद उनका बच्चा है।जिसका सीना अपने पिता की लेखनी को देखकर झण्डीला महसूस करता होगा।एक बार तो कुट भी गए होते,हमारे पूर्वजों को गौ मांस खाने वाला कहकर। ऋग्वेद के उदाहरण देते हैं जब कि गो माने होता है इन्द्रिय,जीभ और इस गो का तालू से लगना ही,गौ भक्षण कहलाता है।यह योग की बात है, इसकी व्यापक व्याख्या पुराण पुरुष श्यामा चरण लाहिड़ी के जीवनी में मिल जाती है।चलो यह तो लक्षण हैं इस राम शरण चचा के। अब आगे बढ़ते हैं।घटनायें तो इन कालों की और भी हैं परन्तु हम तुम्हे ऊपरी झण्ड रूपी मलाई चटा दे रहे हैं।पर तुम इस झण्ड से रत्ती भर भी शर्म नहीं कर रही हो।पूछो क्यों।द्विवेदीजी की लाली-क्यों,महाशय।लाल सिंह- ये यों हैं कि मनोरंजन तो भर पूर करे हो झण्ड से,कछू मिठाई सिठाई खिलाओ झण्डरूपी तो बात बने।प्रयागराज का संदेश खिला कर यह झण्ड सा संदेश दे दो कि तुम भी झण्डशुद्ध मिठाई की चिर शौकीन हो।और एक बार में दस पीस खाकर मुँह से झण्ड नहीं कह सकती हो।और अग़र हँसी तो ठसा लगेगा उससे तुम्हारी उडेगी छोटी झण्ड और अगर पानी न मिला शायद वह परिवर्तित हो जाए महाझण्ड में।और झण्ड झण्ड कहते हुए आँसू तो निकलेगें ही शूद सहित।द्विवेदीजी की लाली-ओके डन।परन्तु लाल सिंह तुम हमें झण्ड का अभिशाप न दो।हम तुम्हें एक किलो मिठाई क्या एकआध कुन्तल से अधिक मिठाई से दबा देंगे।जिससे उड़ जायेगी तुम्हारी झण्ड।दबा के निकाल लेंगे चिंता न करो।झण्ड झण्ड कहते हुए।लाल सिंह-यों कैसे,चालाक लड़की हमारी झण्ड हमी पे चढ़ा रही हो।तुम न सह पाओगी इस झण्ड के भार को, और तुम हमें दबाओगी मिठाई से मैं भाग जाऊँगा चंद्रमा पर वहाँ वजन रह जाएगा एक बट्टा छः। जिससे उड़ जाएगी तुम्हारी झण्ड। द्विवेदीजी की लाली-अरे यह तो मनोरंजन की झण्ड कथा है, इस झण्ड प्रवचन को आद्य-ऐतिहासिक काल की शुभवेला में उदघाटित कर दो।मिठाई भी तो आ रही है।लाल सिंह-इस रंगा-रंग कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हैं।लाल सिंह-तुम्हारी इतिहास में रुचि देखकर यह बालक गद गद है।तुमने यह विद्या कहाँ से सीखी मोतरमा।अरे लाल सिंह तुम्हारे इस झण्ड को मैं भी शोध रहीं हूँ।मैं भी झण्डमयी हो गईं हूँ।इस झण्ड को शिखर तक ले जाऊँगी।और वहाँ झण्ड पर शासन करूँगी।
(शेष झण्डशास्त्र कल- आद्य ऐतिहासिक काल की सुर सुरी कथा के संग)
©अभिषेक पाराशर