प्रेम के मायने
प्रेम के मायने
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उसने कहा
प्रेम निखालिस उधार है
यह नकद नहीं
इसका कोई कद नहीं
यह आकार में निराकार है,
जीवन में अजीवन सा
पंखुरियों सा सुवासित
कोमल बंधन इसका
लगता दोनों के गले में पड़ा
काँटों भरा हार है,
संवेदना इस तरह की
अनुभूतियाँ अतरंगी
रोयां रोयां अंग अंग
बिना स्पर्श
असंख्य विचारों से परिपूर्ण
सूचना का संसार है,
एहसास की पीड़ा या खालीपन के विचार
एक नहीं भरमार है
ठीक ही तो है
दुविधा में जीता त्याग से रीता
खोने – पाने के स्वार्थ को अपनाये
खुदगर्जी में दुनिया भुलाये
प्रेम,
कदाचित अर्थहीन
किशोर वय का पहला
नमूना अनोखा प्यार है ।
– अवधेश सिंह