#दोहे -शृंगार रस के
शब्द-शब्द में प्रेम है , सुनकर भरे उमंग।
जीवन अब अभिराम है , प्रीतम तेरे संग।।
नैनों से मोहित करे , बातें खींचें ध्यान।
केशराशि से छेड़ती , नस्तर है मुस्क़ान।।
नयन चुरा कर देखती , करे नहीं इक़रार।
पूछें तो कहती यही , नहीं जानती प्यार।।
कभी शर्माए देखके , कभी हँसे वो देख।
कहे नहीं कारण मुझे , छिपा रखे उल्लेख।।
रेत सरिस देती उड़ा , कहूँ हृदय की बात।
आतुर मिलने को रहे , याद करे दिन रात।।
छिपकर देखूँ मैं उसे , दिखती वो बेचैन।
लगे तलाशें हैं मुझे , विरह जले दो नैन।।
हृदय नहीं लगता कहीं , रहता है बेचैन।
सूरत रहे मासूक की , हरपल बसके नैन।।
#आर.एस.’प्रीतम’