प्रेम की साधना
“प्रेम” की साधना नित्य चलने लगी।
साधकों कामना नित्य फलने लगी।
कल्पना बन गई मां की आराधना ।
स्वार्थ की भावना हाथ मलने लगी।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,प्रेम
“प्रेम” की साधना नित्य चलने लगी।
साधकों कामना नित्य फलने लगी।
कल्पना बन गई मां की आराधना ।
स्वार्थ की भावना हाथ मलने लगी।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,प्रेम