‘प्रेम की राह पर-1 मेरे उपन्यास से।
तुम ऑनलाइन आकर ऐसे शरमाती हो,जैसे ससुर के कमरे में घुस रही हो और पर्दा डालकर ऐसी हो जाती हो जैसे मुझे कोई देख नहीं रहा है”
द्विवेदीजी की लाली-(लाल सिंह से)तुम,हे मायावी पुरुष, झण्ड बहुत उड़ाते हो। हूँ।क्यों।बताओगे।
लाल सिंह-अब सुनो ध्यान लगाकर सुनना, हे देवी(द्विवेदीजी की लाली से)इस झण्ड का प्राचीन इतिहास है।बहुत अधिक बताने से तो कोई लाभ नहीं है, संक्षेप से बताएंगे, क्यों कि सार गर्भित लिखने पर ही संघलोक सेवा आयोग भी अच्छे नम्बर देता है।अग़र नहीं लिखा तो तुम्हारी उड़ा देगा झण्ड। और इसके बाद नंबर नहीं आया तो यह समाज,आस पड़ोसी, अध्यापक सभी मिलकर महाझण्ड उड़ाते हैं।और विशेषकर सामने वाली चाची जो अँगूठा टेक हैं, फिर भी बिना झण्ड के बात ही नहीं करती हैं।क्यों?कह ही देती ही लाला तुमसे ना हो पायेगा।क्यों कि तुम्हारी झण्ड उड़ चुकी है।खैर छोडो संघ लोक सेवा आयोग हिन्दी माध्यम वालों की तो हर साल झण्ड उड़ाता है।क्यों कि ऐसे लोग पेपर सेट करते जिनकी बीबीयाँ झण्ड उड़ाकर भेजती हैं।।तो फिर वह भी सोचते हैं कि साला अपुन भी खिसियाके अभ्यर्थी की झण्ड उडाएगा।तो बेचारे ग़रीब अभ्यर्थी की झंड तो उड़ गई न। पहले प्रश्न पर झण्ड दूसरे पर झण्ड,और झण्ड का क्रम सौं वे प्रश्न तक उड़ता है।उसकी महा झण्ड तब उड़ जाती है जब आंसरकी झण्ड उड़ाऊंगी तेरी झण्ड उड़ाऊंगी कहते हुए उसके हाथ में आ जाती है।उसके एक दो आँसू निकलते हैं झण्ड उड़ाते हुए।वह भी रुमाल से पोंछ लेता है। झण्ड उड़ाते हुए वह सोचता है कि कोई बात नहीं अबकी बार झण्ड में आ लगाकर झण्डा गढूँगा और झण्ड की झण्ड उड़ा दूँगा। तो यहहै झण्ड की वर्तमान यात्रा का परिदृश्य। और रही सही झण्ड द्विवेदीजी की लाली उड़ा रही है हाँ हाँ तुम्ही। द्विवेदीजी की लाली-अरे लाल सिंह,झण्ड के इतिहास पर प्रकाश डालो। लाल सिंह-हैं। तुम्हे बड़ा मजा आ रहा है झण्ड का इतिहास जानने में।
लाल सिंह-तो अपनी बात पर आते हैं झण्ड के इतिहास पर प्रकाश डाल रहा था।आखिर झण्ड,झण्ड क्यों हुई।वैसे वर्तमान में तुम मेरी झण्ड उड़ा रही हो।ख़ैर छोड़ो तुम जो मेरी झण्ड उड़ा रही हो वह मेरे लिए गुलाब हैं।उन झण्ड रूपी गुलाबों को सूँघ लेता हूँ। तो फिर झण्ड उड़ जाती हैं।इतनी खतरनाक है यह झण्ड कि झण्ड उड़ गई, पता नहीं झण्ड कब उड़ गई।और झण्ड उड़ गई। जाने कैसी झण्ड है।झण्ड की झण्ड उड़ा रही है। झण्ड के इतिहास पर चर्चा करते हैं। तभी झण्ड की वास्तविक व्याख्या हो सकेगी।…………………?(शेष कल झण्ड उड़ाते हुए??)
©अभिषेक पाराशर