प्रेम की राह।
पागल प्रेमी प्रेम वश,चला प्रेम की राह।
हृदय ईष्ट आराध्य है,और नहीं कुछ चाह।।
कठिन राह है प्रेम की,बैरी जगत बबूल।
कंकड़-कंटक पाँव में,चुभें हजारों शूल।।
घना अँधेरा प्रेम में,भरा हुआ है स्याह।
ऐसे मंजिल का पथिक,लुटता आधी राह।।
गम ही दौलत प्रेम की,दर्द कसक भरपूर।
आँखों में आँसू भरें,खुशियाँ कोशों दूर।।
जाने कितने जख्म हैं,और जख्म का दाग।
मगर कंठ से,फूटता,मधुर मिलन का राग।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली