प्रेम की भाषा
प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसे परिभाषित करना बहुत ही मुश्किल है I प्रेम को महसूस किया जा सकता है I सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का ‘पुष्प’ कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि इसकी कोमल पंखुड़ियों पर सामाजिक बदनामी की अम्ल वर्षा करें या इसकी जड़ों को विश्वास एवं समर्पण के अमृत से सींचेंI सारे मानव जाति के लिए प्रेम एक सर्वोत्तम सौगात है। प्रेम प्रकृति का वह अनमोल उपहार है जो मानव जाति के अस्तित्व को बनाए रखने मे सहयोगी है। प्रेम की भाषा हर कोई समझता है यहाँ तक कि एक नन्हा परिंदा स्नेह की भूख मैं लिप्त रहता है और पशु पक्षी भी स्नेह को भली भाँति समझते है I
प्रेम वह मधुर अहसास है जो जीवन मे मिश्री घोल घोल देता है। आपसी तनाव, नासमझी, कटुता दूर करने व वात्सल्य तथा भाईचारे में प्रेम की महत्तपूर्ण भूमिका है। स्नेह से किसी के भी दिल पर राज किया जा सकता है Iविशुद्ध प्रेम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है। सच्चा प्यार न तो शारीरिक सुंदरता देखता है और न ही आर्थिक या शैक्षणिक पृष्ठभूमि। सच्चा प्यार बस, प्रिय के सामिप्य का आकांक्षी होता है। निर्निमेष दृष्टि से देखने की भोली चाह के अतिरिक्त प्यार शायद ही कुछ और सोचता हो। वास्तव में तो प्यार अभी तक प्यार है जब तक उसमें विशालता व शुद्धता कायम है।
दुर्भाग्यपूर्ण आज प्रेम की नैसर्गिक अनुभूति आज आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खो गई है। वर्तमान में प्यार जैसे शब्द से सभी परिचित होंगे मगर सच्चे प्यार की परिभाषा क्या है, यह बहुत कम लोग जानते हैं और महसूस करते है ।
वर्तमान में फ़िल्मो के प्रभाव से युवा पीढ़ी खुद को आधुनिकता के लबादे मे लपेट कर रखती है I वह फ़िल्मो के माफ़िक ही खुद को ढालने की होड़ मे लगे रहते है I पल भर के आकर्षण व तथा बाहरी आवरण की झूठी आड़ में भावनाओं के शोषण को ही प्यार मानकर स्वयं तो गुमराह कर रहे है, साथ में प्यार को भी बदनाम कर रही है।
अशुद्ध व सतही प्यार न केवल दो हृदयों के लिए नुकसानदायक है बल्कि भविष्य में जीवन के स्याह होने की वजह भी बन जाता है।
सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है।