प्रेम की जो पुनीत धारा है
ग़ज़ल
यह हमारा समाज प्यारा है
ये तो परिवार भी हमारा है
कोई ऊँचा न कोई है नीचा
सबने मिलकर इसे सँवारा है
आओ मिलकर नहाएँ हम तुम सब
प्रेम की जो पुनीत धारा है
बाबा साहेब ने सिखाया हमें
सबसे उत्तम ये भाई चारा है
लो ये संकल्प संगठित हों सब
इसमें ही तो भला हमारा है
छोड़ दो बैमनस्यता सारे
इसमें होता बड़ा ख़सारा है
समतावादी विचार हों सबके
कह रहा संविधान प्यारा है
दिल में हो भेदभाव कोई नहीं
सबने मिलकर यही पुकारा है
हर तरफ़ शान्ति हो यहाँ प्रीतम
ये ही संसार चाहे सारा है
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)
9559926244