प्रेम की चदरिया
प्रेम की एक चदरिया बुनी मैंने ,
लो साँवरे का रंग मुझपर चढ़ गया ..
जो भी था ,जैसा भी था चित मेरा था
वो चितचोर मेरा चित भी चोरी कर गया ..
लो ‘निहारिका’ अब मीरा बनी तू भी उसकी
वो कन्हाई बंसी से मोहित तुझे भी कर गया ..
मेरी आँखों में अब भर गए इंद्रधनुषी रंग
और योग मेरा ज्यो -त्यों धरा ही रह गया …
कितने ही प्रयास हुए विफल मेरे
छीन कर सुध,मेरी चेतना भी वो हर गया ..
मैं तो गिरधर संग खेलन को चली थी
और वो छलिया मुझे फिर छल गया ..
निहारिका सिंह