प्रेम किया नही, हुआ
सती और शिव संबाद प्रथम मिलन पर
माना तुमने मुझसे प्रेम किया
प्रेम ने मेरा भी मन छू लिया
एक फ़क़ीर हूँ मैं, जानती हो ना
तुम्हारा क्या भविष्य हुआ
मेरे साथ बस धुआं ही धुआं
मैं वन का घुमक्कड़ साधू
मेरे पास कुछ नही ,तुम्हे क्या दूँ
तुम दक्षसुता हो, मानती हो ना
फिर भी कैसा भूत सवार किया
क्या कोई सोच विचार किया
मुझे सुख और दुख माटी के समान
मेरे पग में कंकर को पुष्पो का मान
क्या श्रृंगार हृदय से बैराग्य चाहती हो ना
जाओ सब भूलकर, अब तक जो किया सो किया
भूल जाना कभी तुमने किसी से प्रेम किया
हे नाथ, आप का आदेश सर माथे
मैं लौट जाउंगी, अपना मत बता के
विरक्ति का विधान चाहते है ना
मैं भूल जाउंगी, अब तक जो हुआ सो हुआ
सिवा इसके की मुझे आपसे प्रेम हुआ
मैंने दिन नही क्षण जिये है आपके लिए
मैं प्यासी भटक रही हूँ, एक बूंद प्रेम का पिये
समस्या का समाधान चाहते है ना
मैं समस्या नही हूँ, संगिनी रहूंगी
राग आपका अन्यथा बैरागनी रहूंगी
माना आप अंतहीन हो बिश्वेस्वर
प्रेम मेरी स्वांस है नही कोई ज्वर
कितने त्याग किये अब एक और चाहते है ना
ऐश्वर्य, महल, परिवार सब तज दिए
प्रेम परीक्षा के लिए सब व्रत लिए
बस यही तक आप मेरे थे, दुख नही
पर मैं आपकी रहूंगी सदा सत्य यही
मैं सती हूँ सती, अगर मेरे प्रेम में सत है ना
तो अब मैं नही आप कहोगे प्रेम से प्रेम हुआ
क्योंकि मैंने प्रेम किया नही आपसे प्रेम हुआ
प्रवीन शर्मा
मौलिक स्वरचित रचना