प्रेम का हुनर
मनुष्य भी क्या कारनामे करता है,
ईश्वर के दिए हुनर को भी ठुकरा देता है !
ईश्वर ने उसे सुर दिया साज सजाने को
उसने ठुकरा दिया, कि उन्हें पसंद नहीं !
कहते हैं अकेले आए थे ,अकेले ही जाएंगे,
भौतिक वस्तु तो यहीं रह जाएगी अपने हुनर ही ले जाएंगे !
यह क्या ?,वह तो अपने हुनर को भी, प्रेम में दफन कर जाएंगे,
इतना प्रेम ही, किस काम का ,जब जीते जी ही मर जाएंगे !
हर दिल में एक ख्वाहिश जन्म लेती है ,जग जीत लाएंगे
लेकिन वह तो ,प्रेम में हार कर अपनी ही हस्ती मिटा जाएंगे !
काश ! काश ऐसा होता प्रेम में यूं ना छले जाएंगे,
ईश्वर के दिए हुनर में जीते, जो साथ ले जाएंगे ,
भौतिक संसार में सब अपनापन है ,पता नहीं मर के कहां जाएंगे !
जो सीखा,जो किया इस जन्म में, अगले जन्म में भी पाएंगे !
ऐसा कार्य कर चलें कि यह हुनर ईश्वर दोबारा दें पायेंगे
,
आज जो हुनर मिला कल कैसे पाएंगे !
जिसके सुरों से हम पुनः जी पाएंगे ,पुनः जी पाएंगे ,
कबूल करें वह हुनर जिसे, खुदा फिर से दे पाएंगे ……….