प्रेम का मधुमास
प्रेम का मधुमास खिले तब
बसन्त आवेग का बहे जब
भँवरे मडराये उस फूल
पराग कण मिले जिस प्रसून
जीवन की ऊर्जा पराग में
जीवन पल्लवित अनुराग में
श्वांस से श्वांस स्वर मिले
सृष्टि सृजन भी इसी से चले
उदभव विकास और ह्रास
निरन्तर चले , भले हो त्रास
पराग कण से विकसे सजीव
बिना जिसके जीवन निर्जीव