प्रेम का दीपक जो दिल में जल रहा है
ग़ज़ल
प्रेम का दीपक जो दिल में जल रहा है।
स्वार्थ का तम उसके नीचे पल रहा है।।
प्यार में उसके कोई कब छल रहा है।
प्यार मां का तो सदा निश्छल रहा है।।
हम बने हैं किरकिरी आँखों की उसकी।
जो हमारी आँखों का काजल रहा है।।
ये निगल जायेगा ही सुख चैन तेरा।
लोभ का अजहर जो दिल में पल रहा है।।
चल रहा बैसाखियों पर जो किसी की।
आदमी वो ही सदा निर्बल रहा है।।
मिल ही जायेगा अनीस अब ढूंढ़ने पर।
हर मुसीबत में छुपा भी हल रहा है।।
– अनीस शाह “अनीस”