*प्रेम का डाकिया*
अपने दिल का सारा हाल
पन्नों पर लिख डाला
दिल पर जो बीत रहा
खत में सब कह डाला
गीत बनाकर रखा था
अपनी तकिया के नीचे
शब्दों की माला बन जाए
कोई ना उसको देखें
मीत मेरे इस प्रेम गीत को
कैसे तुझ तक भेजूं
दिल की अपनी बगिया को
रो-रो कर मैं सीचू
खत मेरा धूमिल हो जाता
आंसुओं की धार में
कब आएगा डाकिया प्रेम के इस आधार में
हृदय गति भी तीव्र वेग से
प्रियम को पुकार रही
सूखी अखियां भी वर्षा की
बूंद बूंद निहार रही
विचलित मन से यादों का
गुबार उठा ही जाता है
प्रेम विरह की अग्नि में
संसार जला ही जाता है
विरह के सारे पृष्ठो को
लिखा गीत के सार में
कब आएगा डाकिया प्रेम के इस आधार में
कब आएगा डाकिया प्रेम के आधार में।