Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Jan 2017 · 4 min read

प्रेम का ज्वार-१

भाग-१- प्रेम का ज्वार
—————–
प्रीति बेलि जिनी अरुझे कोई,अरुझे मूए न छूटे सोई।
प्रीति बेलि ऐसे तन बाढ़ा,पलुहत सुख बाढ़त दुःख बाढ़ा।
प्रीति अकेली बेलि चढ़ जावा,दूजा बेलि न संचइ पावा।
जायसी द्वारा रचित उक्त पंक्तियों का तात्पर्य यह है कि किसी को प्रेम के बेल में उलझना नहीं चाहिए क्योंकि इस उलझन से मृत्यु के बाद ही मुक्ति मिल पाती है। जब तन में प्रेमभाव का उदय होता है , तो सुख तिरोहित हो जाता है और दुःखों में वृद्घि हो जाती है।( जायसी के सूफ़ी कवि होने के कारण उनके प्रेम में विरह की प्रधानता है। इसी वजह से वो प्रेम को दुःख का कारण मानते हैं।) प्रेम रूपी बेल जहाँ फैलतीं है , वहाँ किसी और बेल का प्रसार नहीं हो सकता।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसे कालखंड आते हैं , जो सहज आकर्षण से से प्रारम्भ होकर खिन्नता , अवसाद एवं सीख के साथ ही समाप्त होते हैं । अपने जीवन के एक ऐसे ही समय की चर्चा इस संस्मरण में कर रहा हूँ । वैसे इस प्रस्तुति का मैं मुख्य किरदार नहीं हूँ , बल्कि सहायक किरदार हूँ।
बात उन दिनों की है , जब मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी०एससी० की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुका था । परंतु परास्नातक का सत्र विलंबित होने के कारण ऐकडेमिक शिक्षा से मुक्त था । प्रतियोगी परीक्षा के लिए निर्धारित न्यूनतम उम्र से कम उम्र होने के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं से भी दूर था । कुल मिलाकर जीवन में ठहराव था और मैं खलिहर था । ऐसी ही दशा कुछ मित्रों की भी थी , वो भी मेरी तरह खलिहर ही थे। उनमें से कुछ मित्र मेरे ही छात्रावास में थे और कुछ डेलिग़ेसी में रहते थे।
हमारे मित्र मंडली में मुख्य रूप से सुरेश सिंह चिंटू , समीर पांडेय , पंकज पांडेय , शाही आदि थे। चूँकि उस समय हमारे पास कोई काम नहीं था , तो हम विश्वविद्यालय के प्रांगण में मुक्त विचरण कर अपने समय का सदुपयोग करते थे । ज़्यादातर हम लोग विश्वविद्यालय के आर्ट्स फ़ैकल्टी में ही विचरते थे । हम सभी उम्र के उस ख़ास पड़ाव पर थे , जब विपरीतलिंगी के प्रति सहज और स्वाभाविक आकर्षण पनपता है । अतः अपने मुक्त विचरण के दौरान सौंदर्य दर्शन का भी आनंद प्राप्त करते थे । परन्तु यह दर्शन कुछ इस प्रकार का होता था कि केवल हमें ही पता होता था कि हम देख रहे हैं । परन्तु हम जिन्हें देख रहे होते थे , उनको तो एहसास ही नहीं होता था कि उनका कोई दर्शनाभिलाषी भी है । वैसे भी मेरे व्यक्तित्व में शुरू से ही शराफ़त कूट-कूट कर भरा था । इसलिए मैं अपनी इमेज बिल्डिंग पर ख़ास तौर पर ध्यान देता था । अतः चाहकर भी अपने लिए निर्धारित लक्ष्मण रेखा को लाँघ नहीं पाता था । यद्यपि इमेज के मायने तो वहीं होते हैं , जहाँ कोई आपको जानने वाला हो । जहाँ आप नितांत अपरिचित हों , वहाँ इमेज के क्या मायने ? ख़ैर जो भी हो मैं ख़ुद को लेकर कुछ ज़्यादा ही सतर्क रहता था । मेरे अन्य साथी अपनी इमेज को लेकर सतर्क नहीं रहते थे।
ऐसे ही मुक्त रूप से विचरते और कुछ काम से हम लोग विश्वविद्यालय परिसर स्थित भारतीय स्टेट बैंक में गए थे । बैंक के अंदर अन्य ग्राहकों के अतिरिक्त ०२ कन्याएँ भी थीं । उन्हें देखकर टोली के तीनों सदस्यों की आँखें अचानक से चमक गयीं । इस चमक को शायद कन्याओं ने भाँप लिया । इससे उन्हें अपने सौंदर्य का अहसास हुआ और उनके मुखमंडल पर गर्व के भाव प्रकट हो गए । वो दोनों आपस में हँस कर बात करती और बीच-बीच में हम लोगों को देख भी लेती थीं । अब तो हमारी ख़ुशियों का ठिकाना न था । हमारे हृदय में कोमल भाव हिलोरे मारने लगी । बैंक का काम ख़त्म होने के बावजूद हमारे पाँव बैंक में ही जमे रहे । पाँव गतिमान तब हुए , जब दोनों कन्याएँ अपना काम निपटाकर बैंक से निकलने लगीं । हमारा सुख अब क्षणिक और मिथ्या हो गया था । ख़ुशी वेदना में परिवर्तित होने वाली ही थी कि बैंक के गेट से निकलते ही उन दोनों ने अचानक पलटकर हमारी ओर देखा और हँसी । अब उन्हें हमारा चेहरा जोकर जैसा होने के कारण या हमारी मनोदशा पर हँसी आ रही थी या किसी अन्य वजह से , इसका तो पता न था । लेकिन हम लोगों ने इसे अपनी ओर भी उनके आकर्षण के रूप में लिया । फिर क्या था , हम लोगों के मुरझाए चेहरे फिर से खिल गए और पाँव गतिमान हो गए । अब हम उनका अनुगमन करने लगे । कुछ दूर जाने के बाद हमें अहसास होता कि अब बहुत हो गया , अब वापस लौट जाना चाहिए। पर उसी क्षण वो पलटतीं और उनकी मुस्कान हमें पुनः आगे बढ़ने को विवश कर देती थीं । अब वो आगे-आगे और हम उनके पीछे-पीछे । लेकिन हममें से एक लोग शुरू से ही वापस लौटने को कह रहे थे , और वो हम दो मित्रों के कुछ पीछे रहकर हमसे कुछ दूरी बनाए हुए थी । इसका रहस्य हमें तत्काल तो नहीं पता चला , कुछ देर बाद पता चला । ख़ैर चलते-चलते वो विश्वविद्यालय परिसर से निकलीं और महिला छात्रावास के अंदर प्रविष्ट हो गयीं । अब तो हमारे लिए आगे के मार्ग बिल्कुल बन्द । वापस लौटना हमारी विवशता थी । हम सब बोझिल मन से वापस लौटने लगे । परंतु हमारे क़दम जकड़ से गए थे और वापसी में हमारा साथ ही नहीं दे रहे थे । ख़ैर किसी तरह हम वापस आए , विश्वविद्यालय परिसर से भी और कल्पना लोक से भी । वापस लौटते समय हम लोगों से दूरी बनाए रखने वाले मित्र चिंटू ने बताया कि उनमें से एक कन्या बी०कॉम० में उनकी सहपाठिनी थी , परंतु उन्हें उनका नाम तक नहीं पता था ।

——-क्रमशः

Language: Hindi
444 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जब-जब सत्ताएँ बनी,
जब-जब सत्ताएँ बनी,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
" ज़ख़्मीं पंख‌ "
Chunnu Lal Gupta
लोग कहते हैं कि प्यार अँधा होता है।
लोग कहते हैं कि प्यार अँधा होता है।
आनंद प्रवीण
जीवन का मकसद क्या है?
जीवन का मकसद क्या है?
Buddha Prakash
*वो बीता हुआ दौर नजर आता है*(जेल से)
*वो बीता हुआ दौर नजर आता है*(जेल से)
Dushyant Kumar
"मिलते है एक अजनबी बनकर"
Lohit Tamta
अजब प्रेम की बस्तियाँ,
अजब प्रेम की बस्तियाँ,
sushil sarna
मुक्तक- जर-जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
मुक्तक- जर-जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
सत्य कुमार प्रेमी
■ सामयिक आलेख-
■ सामयिक आलेख-
*Author प्रणय प्रभात*
पग न अब पीछे मुड़ेंगे...
पग न अब पीछे मुड़ेंगे...
डॉ.सीमा अग्रवाल
सुविचार
सुविचार
Dr MusafiR BaithA
ज़रूरत के तकाज़ो
ज़रूरत के तकाज़ो
Dr fauzia Naseem shad
6) जाने क्यों
6) जाने क्यों
पूनम झा 'प्रथमा'
*छतरी (बाल कविता)*
*छतरी (बाल कविता)*
Ravi Prakash
23/58.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/58.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
संत एकनाथ महाराज
संत एकनाथ महाराज
Pravesh Shinde
जीवन
जीवन
नवीन जोशी 'नवल'
चाहता हे उसे सारा जहान
चाहता हे उसे सारा जहान
Swami Ganganiya
"रिश्ता"
Dr. Kishan tandon kranti
बहन की रक्षा करना हमारा कर्तव्य ही नहीं बल्कि धर्म भी है, पर
बहन की रक्षा करना हमारा कर्तव्य ही नहीं बल्कि धर्म भी है, पर
जय लगन कुमार हैप्पी
माँ सरस्वती-वंदना
माँ सरस्वती-वंदना
Kanchan Khanna
सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll
सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll
गुप्तरत्न
Jo Apna Nahin 💔💔
Jo Apna Nahin 💔💔
Yash mehra
हक़ीक़त
हक़ीक़त
Shyam Sundar Subramanian
तारीफ किसकी करूं किसको बुरा कह दूं
तारीफ किसकी करूं किसको बुरा कह दूं
कवि दीपक बवेजा
फिर झूठे सपने लोगों को दिखा दिया ,
फिर झूठे सपने लोगों को दिखा दिया ,
DrLakshman Jha Parimal
कुछ भी नहीं हमको फायदा, तुमको अगर हम पा भी ले
कुछ भी नहीं हमको फायदा, तुमको अगर हम पा भी ले
gurudeenverma198
मन सोचता है...
मन सोचता है...
Harminder Kaur
क्या है खूबी हमारी बता दो जरा,
क्या है खूबी हमारी बता दो जरा,
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
अनुभव एक ताबीज है
अनुभव एक ताबीज है
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
Loading...