प्रेम और सेमल फूल
शीर्षक – प्रेम और सेमल फूल
प्रेम और सेमल फूल
दोनों एक जैसे
दूर से देखो
कितना माधुर्य कितना आकर्षण
बियाबान में अपने सुर्ख़
रँग में सजा
करता आकर्षित
ऊँची ऊँची टहनियों में
गुँथे हुए बड़े-बड़े फूल
जहाँ अस्तित्व ही खत्म
टहनियों का
पर
पास आकर देखो
सत्यता से कितना परे
अनगिनत स्थूल कंटक
पहुँच से परे
जतन से पा भी गए
तो
निरा सुगंधहीन ।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )