प्रेम।की दुनिया
नमन मंच
विस्य प्रेम प्रतीक्षा
दिनांक १०:६:२०२४
प्यास गले की.
नजर भले की
देख वो श्रृंगार बनी
मेरे गले की
मिलना तो चाहती है।
पर भुलना भी चाहती है।
मैं उसकी नजरों को धोखा दे,
उस पगलि से मिलना चाहता हूं
उसकी बहकती निगाहों में,
अपनी झलक देखता हूँ.
..! बुलाकर अपनी पनाहो में
वो अपनी पलक रखती है ।
खामोशी से वो मुझे ताकती है।
दुर खड़ी वो मुझे ताना मारती है
लक्षण मुझमें है नहीं प्रेम का
फिर भी वो मुझे ताकती है।.
आश हूँ मैं उसके जीवन की
प्रेम भैया की पतवार हूँ
खास हु करतार के कर पावन की
आज उसकी शांति का इजहार हूँ
काना की बन बांसुरी.
निगाहो की बन दुरी
आज वो मेरी राधा
किसी ब्रजकिशोर की बनी मजबुरी
नजर के सामने देख निगाहों में
आईना देख वो हिम्मत रख मन में
शूल भूल गयी रख मन में
एहसास उसका लाजमी था।
कांटे रख मना कर मेरे बदन पर रखा गयी
मेरी सादगी थी।
धुल आँखो में रख ।
भुल पनाहों में रख
लिखा गयी खुद दिल पर
भूल मेरी सलाहो में रख ।
पश्चाताप की अग्नि में बैठ ।
खाली कर रहा सादगी मे खेत ।
रजिस्ट्ररी उसने मेरे नाम करा
भावावेश में लग गयी प्रेम की रेट l
निगाहो का अन्दाजा मेरा मशहूर था।
दुर खंडी तळाशा मैं मजबुर था।
लिख लेता मैं हंसते-हंसते उसका नाम
पर दिल जख्मो से खाली मै मजदुर था ।
भरत कुमार सोलंकी