प्रेमिका को उपालंभ
क्या भूल गयी वो मेरे संग गुजरी सारी राते?
क्या भूल गयी वो जो कुछ छूटी अधूरी बाते?
कैसे अपने साजन के हाथों में हाथ धरा तुमने?
कैसे अपनी मांग में उस सिंदूर को भरा तुमने?
कैसे अपनी साड़ी का गठजोड़ किया होगा?
कैसे उन पावन फेरो का वचन लिया होगा?
कैसे ली होंगी अपनी सखियों से प्यारी सौगाते?
क्या भूल गयी वो मेरे संग गुजरी सारी राते?(1)
जब तूने अपनी देहरी को ढोक दिया होगा।
तब मेरी यादों ने तेरा रस्ता रोक लिया होगा।
क्या नए घर की अगवानी में उस प्यार को पाया था।
जिसने तुझको बचपन से अब तक गले लगाया था।।
क्या मुझ पर तुम अपना हक नही जताते।
क्या भूल गयी वो मेरे संग गुजरी सारी राते।।(2)
क्या साजन की बाँहों में सुख पाता होगा मन,
क्या मेरे आलिंगन के जैसा काँपता होगा तन।
क्या मेरे अधरों के जैसा ही रसपान किया तुमने,
या बारिश के बादल का भी अपमान किया तुमने।
पहली बार मे जो खुश्बू महकी वो अब कँहा से लाते,
क्या भूल गयी वो मेरे संग गुजरी सारी राते।(3)
क्या अंतर्मन में इन सब प्रश्नों का सैलाब नही आया।
क्या तुमको अपना मीत पुराना भी याद नही आया।।
बताओ कैसे तुमने अपने पिया के आवेशों को झेला।
साजन के साथ कैसे प्रथम रात्रि के उन खेलो को खेला।
क्या रह गयी अब पीर हमारी जो सारी गाते
क्या भूल गयी वो मेरे संग गुजरी सारी राते।(4)
✍️प्रवीण भारद्वाज✍️