प्रेमचंद के पत्र
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम : प्रेमचंद के पत्र (तिथि निर्धारण की समस्या)
लेखक : डॉ. प्रदीप जैन
46 बी, नई मंडी, मुजफ्फरनगर 251001
प्रकाशक : रामपुर रजा लाइब्रेरी, रामपुर
प्रकाशन वर्ष : 2017 प्रथम संस्करण
मूल्य : 120 रुपए
पृष्ठ संख्या : 124
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समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451
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पत्रों का महत्व किसी साहित्यकार द्वारा लिखित साहित्य से कम नहीं होता । प्रायः सभी लोग अपने द्वारा लिखे जाने वाले पत्रों पर स्पष्ट रूप से तिथि अंकित करते हैं । लेकिन बहुत से लोगों की आदत पत्रों पर तिथि लिखने के मामले में अव्यवस्थित रहती है। ऐसे में यह एक विवाद बन जाता है कि लेखक ने पत्र किस तिथि को लिखा है ? केवल तिथि ही नहीं, महीना और वर्ष तक विवादित हो जाता है । प्रेमचंद के साथ भी यही हुआ ।
हिंदी के सबसे बड़े साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने चिट्ठियॉं तो संभवत हजारों की संख्या में लिखीं, लेकिन उन पर तिथि अंकित न होने के कारण तिथि का निर्धारण एक समस्या बन गया । प्रेमचंद के सुपुत्र अमृत राय ने इस समस्या पर प्रकाश डालते हुए लिखा है :-
“अक्सर चिट्ठियों पर पूरी-पूरी तारीख न डालने की मुंशी जी की आदत हमारे लिए काफी उलझन का कारण बनी। महीना है तो तारीख नहीं, तारीख है तो महीना नहीं, महीना और तारीख हैं तो सन् नहीं, और उन चिट्ठियों का तो खैर जिक्र ही फिजूल है जिनमें यह तीनों ही गायब हैं।”
अमृत राय ने अपने पिताजी की उन चिट्ठियों का अध्ययन किया और उन चिट्ठियों को बिना तिथि के प्रकाशित करना उचित नहीं समझा। अतः उन्होंने “बड़ी-बड़ी मुश्किलों से चिट्ठी में कही गई बातों का आगा-पीछा, तालमेल मिलाकर अनुमान से उनकी तिथि का संकेत देने का निश्चय किया।”
अमृत राय का कथन है कि:-
“इसमें मैंने अपनी ओर से पूरी सावधानी बरतने की कोशिश की है लेकिन उसमें गलती की संभावना बराबर रहती है ।”(प्रष्ठ चार)
यहीं पर आकर डॉ. प्रदीप जैन की खोज-पड़ताल शुरू होती है । उन्होंने प्रेमचंद की पचास चिट्ठियों को हाथ में लिया और उनकी अनुमानित तिथि का विश्लेषण करने की ठानी । इस क्रम में उन्होंने तर्क के साथ एक-एक चिट्ठी पर अंकित अनुमानित तिथि को जॉंचा-परखा, अन्य संदर्भों से इसकी सत्यता को समझा तथा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले आकलन के साथ चिट्ठी की तिथि का निर्धारण पाठकों के सामने प्रस्तुत किया । “प्रेमचंद के पत्र: तिथि निर्धारण की समस्या” इसी शोध का परिणाम है । यह बहुत आसान होता कि जो अमृत राय ने अनुमान के साथ लिखा, वह सब स्वीकार कर लेते। लेकिन प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने यह सिद्ध किया है कि अनुमान अनेक बार गलत साबित हो जाते हैं ।
कुछ उदाहरण तो चौंका देने वाले हैं । लेखक को इन मामलों में कितना परिश्रम करना पड़ा होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है ।
पृष्ठ 94 पर एक पत्र का उदाहरण देखिए । इस पत्र को अमृत राय ने 12 नवंबर 1930 का लिखा हुआ अनुमान लगाया है । डॉक्टर प्रदीप जैन अब इस पत्र का विश्लेषण करते हैं । इसमें प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी स्वतंत्रता आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार हुई थीं, जिसकी सूचना प्रेमचंद ने किसी को इस प्रकार दी थी :-
“आपने शायद अखबार में देखा हो, परसों मिसेज धनपत राय पिकेटिंग करने के जुर्म में गिरफ्तार हो गईं।”
डॉक्टर प्रदीप जैन प्रश्न करते हैं कि पत्र के हिसाब से शिवरानी देवी की गिरफ्तारी की तिथि 10 नवंबर 1930 होनी चाहिए । अब इस मामले में पेंच यह फॅंस जाता है कि शिवरानी देवी स्वयं इस बारे में लिखती हैं कि उनकी गिरफ्तारी 11 नवंबर 1931 को हुई थी । किंतु शिवरानी देवी की याददाश्त कमजोर पड़ने का यह मामला मान लिया जाता है ।
अतः एक अन्य पत्र का सहारा शोधकर्ता द्वारा लिया जाता है । प्रेमचंद ने 11 नवंबर 1930 के पत्र में एक अन्य व्यक्ति को लिखा है :-
“तुम्हारी मौसी 9 तारीख को एक विदेशी कपड़े की दुकान पर पिकेटिंग करते हुए पकड़ ली गईं। मैं कल उनसे जेल में मिला और हमेशा की तरह प्रसन्न पाया।”
यह दूसरा पत्र पूरी तरह प्रमाणित है और इस पर तिथि अंकित है । अतः डॉ प्रदीप जैन ने यह निष्कर्ष निकला कि शिवरानी देवी की गिरफ्तारी की तिथि 9 नवंबर 1930 स्वीकार करना सर्वथा सुसंगत है और इस आधार पर यह विवेच्य पत्र इस तिथि के तीसरे दिन अर्थात 11 नवंबर 1930 को ही लिखा गया था।
उपरोक्त उदाहरण में पत्र की मूल तिथि में एक दिन के अंतर को खोज लेना तभी संभव हो सका, जब शोधकर्ता ने इसी विषय पर प्रेमचंद के एक दूसरे पत्र को खोजा और फिर दोनों पत्रों को आपस में मिलाकर देखने का कार्य किया।
एक अन्य उदाहरण पृष्ठ 38 पर है । इसमें पत्र का समय “1915 का आरंभ” अमृत राय द्वारा बताया गया है । शोधकर्ता ने इसका भी विवेचन किया । पत्र में लिखा था :- “प्रेम पचीसी कब तक तैयार होगी ?”
शोधकर्ता ने जानकारी जुटाई तो पता चला कि प्रेम पचीसी अक्टूबर 1914 में प्रकाशित हो गई थी । अतः सर्वप्रथम शोध कर्ता इस निष्कर्ष पर पहुॅंचे कि यह पत्र निश्चित रूप से अक्टूबर 1914 से पूर्व ही लिखा गया था। लेकिन 1914 की अक्टूबर से कितना पहले का समय था, यह अभी जॉंच करना शेष था ।
पत्र में शोधकर्ता डॉ. प्रदीप जैन ने पाया कि उसमें लिखा हुआ था :-
“कल बस्ती जा रहा हूॅं। देखूॅं डायरेक्टर साहब कब तक मास्टरी पर वापस भेजते हैं ।”
अब शोधकर्ता ने प्रेमचंद की सर्विस बुक का रिकॉर्ड प्राप्त किया , जिससे पता चला कि प्रेमचंद ने हमीरपुर से बस्ती के लिए स्थानांतरित होकर 11 जुलाई 1914 को बस्ती में सब डिप्टी इंस्पेक्टर आफ स्कूल्स का पदभार ग्रहण किया था । अतः इस प्राप्त विवरण के आधार पर शोधकर्ता ने यह निष्कर्ष निकला कि प्रेमचंद 9 जुलाई 1914 को हमीरपुर से बस्ती के लिए रवाना हुए होंगे और उससे एक दिन पहले यह पत्र उन्होंने हमीरपुर से लिखा होगा । अतः विवेच्य पत्र 8 जुलाई 1914 को हमीरपुर से लिखा जाना प्रमाणित होता है।
यहॉं महत्वपूर्ण बात यह है कि शोधकर्ता डॉ. प्रदीप जैन ने केवल अनुमान के आधार पर पत्र की तिथि निर्धारित नहीं की। उन्होंने यह पता लगाया कि प्रेमचंद बस्ती कब गए होंगे और प्रेम पचीसी कब तक तैयार हुई होगी ? उपरोक्त तथ्यों के प्रकाश में ही वह प्रामाणिकता के साथ पत्र की तिथि “1915 के आरंभ” के स्थान पर 8 जुलाई 1914 निर्धारित कर सके।
एक अन्य उदाहरण भी देखिए। प्रेमचंद ने एक पत्र मुंशी दया नारायण निगम को लिखा था। अमृत राय ने अनुमानतः इसे 13 जनवरी 1932 का लिखा हुआ बताया । (प्रष्ठ 97)
अब इस पत्र का विश्लेषण देखिए । पत्र में प्रेमचंद लिखते हैं:-
” 9 मार्च को मेरे बड़े भाई साहब बाबू बलदेव लाल का कुलंज से इंतकाल हो गया ।”
यहीं पर पत्र की तिथि निर्धारण में भारी चूक को शोधकर्ता ने पकड़ लिया और कहा कि जब 9 मार्च की मृत्यु थी तो सूचना तेरह जनवरी को कैसे दी जा सकती थी ?
अब एक दूसरा पत्र भी इसी संदर्भ में शोधकर्ता ने विवेचन के लिए अपने सामने रखा । उसमें प्रेमचंद 12 जनवरी 1932 को लिखते हैं :-
“मेरे रिश्ते के एक भाई 9 तारीख को चल बसे ।”
अब यहॉं आकर मामला गड़बड़ा जाता है । एक पत्र में प्रेमचंद स्पष्ट रूप से 9 मार्च की तिथि का उल्लेख कर रहे हैं लेकिन इस पत्र पर तिथि अंकित नहीं है । दूसरे पत्र में साफ-साफ तिथि 12 जनवरी 1932 अंकित है तथा रिश्ते के भाई की मृत्यु की तिथि 9 तारीख लिखी है । इस बिंदु पर हम देखते हैं कि शोधकर्ता के पास वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, तर्कशुद्ध बुद्धि है, पूर्वाग्रह से रहित दृष्टिकोण है । ऐसे में उसे किसी निष्कर्ष पर पहुॅंचकर जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने का उतावलापन नहीं है । इस पत्र की तिथि निर्धारण के संबंध में अपना आकलन शोधकर्ता इन शब्दों में लिखता है:-
“उपर्युक्त समस्त विवेचना के आधार पर इस विवेच्य पत्र की तिथि संदिग्ध प्रतीत होती है। जिसका प्रमाणिक तिथि निर्धारण इस पत्र की मूल प्रति प्राप्त होने पर ही किया जाना संभव है।”
शोधकर्ता की यह सत्यमूलक दृष्टि पुस्तक को मूल्यवान बना रही है । यह तो हो सकता है कि ज्यादातर पत्रों में तिथियों के थोड़े बहुत हेर-फेर से विचारधारा के स्तर पर कोई बड़े बदलाव देखने में नहीं आऍं, लेकिन फिर भी एक अनुसंधानकर्ता को सत्य की तह तक पहुॅंचने के लिए भारी परिश्रम और तर्कबुद्धि का प्रयोग करना ही पड़ता है । समीक्ष्य पुस्तक में डॉक्टर प्रदीप जैन की यही शोध परक दृष्टि सामने आती है, जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।