“ प्रेमक बोल सँ लोक केँ जीत सकैत छी ”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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प्रेमक दू शब्द सुनबाक ललक सबकेँ होइत छैक ! मन तृप्त भ’ जाइत छैक ! ढाढ़स बन्ह लगैत अछि ! नवीन उमंगक आभास होमय लगैत अछि ! किछु आर करबाक जिज्ञासा हृदय मे उभरय लगैत अछि ! जीवनक प्रत्येक पड़ाव पर हमर भीतर एकटा बालक नुकायल रहैत अछि ! मात्र बच्चे टा क नहिं अपितु प्रत्येक व्यक्ति केँ प्रोत्साहन ,प्रशंसा आ ढाढ़स क जरूरत पड़ैत छैक !बच्चा सेहो स्नेह आ प्रेमक दू शब्दक भूखल होइत अछि ! मधुर बोल सँ मनोबल बढि जाइत अछि ! विध्यार्थी केँ शिक्षक अपन मधुर बोलक फुहार सँ हुनकर मनोबल बढ़बैत छथिन ! अधिकारीगण अपन कनिष्ठ सहयोगी केँ मृदुलता क स्वर मे जखन किछु कहैत छथि त सहयोगी मे नवीन स्फूर्ति क प्राण संचालित होइत छनि ! समांतर( VARIABLE ) नेतृत्व क सेना सहो स्वीकार करैत अछि ! प्रत्येक डेग -डेग पर प्रेमक दू बोलक महत्व अद्भुत होइत अछि !
प्रेमक दू शब्द सुनबाक अभिलाषा ल केँ हमरलोकनि असंख्य मित्र सँ फेसबुक क पन्ना सँ जुड़ी गेल छी ! अधिकांश लोक केँ कियो व्यक्तिगत रूपेण जनैत नहिं छथि आ नहिं चिन्हबो करैत छथि ! कियाक त इ यंत्र समस्त सरहद क देबाल केँ तोडि सात समुद्र लाँघि मित्रता केँ एकटा नव स्वरूप प्रदान केने अछि ! जाति ,वर्ण आ लिंग रहित एकटा मित्रता क विशाल कड़ी बनि गेल अछि ! इ कड़ी क विशेषता बड्ड अपूर्व अछि !
की पैघ ,की छोट ,की नेता ,की अभिनेता आ की स्त्रीगण सब केँ सब हमरा लोकनि फेसबुक क मित्र कहबैत छी !
भाषा कखनो आरि नहिं बनल ! संस्कृति ,रीति -रिवाज ,वेष -भूषा ,भाषा आ खान – पान जाननाय आ सीखबा क अवसर प्राप्त भेल ! दूर रहितो पास आबि गेलहूँ !
वस्तुतः , हम अनगिनत आ अनजान लोकनि सँ जुडैत चलि गेलहूँ ! हमरा लागल एकटा विशाल सेना क निर्माण क लेने छी ! प्रतिस्पर्धा क दौड़ मे आगा निकलय लेल हम हजारो दोस्त बना लेलहूँ ! परंच इ नेतृत्व विहीन समूह क रफ्तार सदैव अलग रहल ! प्रत्यक्ष रूपेण इ जुड़ल देखाइत अछि मुदा आंतरिक परिपेक्ष मे एक दोसर सँ अनभिज्ञ रहैत अछि ! सब अपन-अपन धुन मे मातल छथि ! फेसबुक क रंगमंच पर लेखक ,कलाकार ,कवि ,प्रवक्ता ,कलाकार ,राजनीतिज्ञ ,नेता ,अभिनेता ,नौकरशाह ,संगीतकार ,पत्रकार ,शिक्षक ,गायक ,विद्यार्थी ,बच्चा ,बूढ़ आ स्त्री -पुरुख क साथ अछि मुदा भूलल -बिसरल कियो किनको सँ सनिध्य क संयोग भ जाइत छैनि अन्यथा सब अपन-अपन फराक रास्ता चुनि लेने छथि ! अधिकांश लोक एक दोसर केँ नज़रंदाज़ करितेह भेटताह !
व्हाट्सप्प मे सहो हजार क हजार लोक जुड़ल छथि मुदा बहुत कम लोक एक दोसर सँ गप्प करैत छथि ! मोबाईल सँ गप्प -सप करबा क लालसा विलीन भेल जा रहल अछि ! आर त आर हमसब एकर गुलाम बनैत चलि गेलहूँ ! आ अपना लोकनि सभ सँ दूरि होइत चलि गेलहूँ ! परिवार मे जखन लोकक विकेन्द्रीकरण भ रहल अछि तखन अंचिन्हार फेसबुक मित्र आ व्हाट्सप्प मित्र केँ ध्यान देत ? अपन उपलब्धि ,अपन उद्गार आ विचार केँ व्हाट्सअप पर प्रस्तुत केनाय निरर्थक लगैत अछि ! बारी -बारी सँ सभक व्हाट्सप्प पर आहाँ अपन उपलब्धि क उल्लेख करि केँ देखि लिय
जवाब ,प्रतिक्रिया आ प्रेमक दू गोट शब्द क बात त छोडि दिय , हुनकर प्रतिक्रिया मे हजारो तथाकथित व्हाट्सप्प मित्र बेफ़जुल क मांगल -चाँगल पोस्ट भेजि देताह !
लोक प्रेमक दू शब्द क भूखल होइत अछि मुदा हमरा लोकनि सही समय पर मौन भ जाइत छी ! एकटा दूटा संभवतः सक्रिय नहिं भ सकैत छथि परंतु हजार क हजार असक्रिय केना भ सकैत छथि ? इ यंत्र हमरलोकनि सँ जुडबा क संदेश दैत अछि ! संवाद क माध्यम सँ हमसब एक दोसर सँ जुडि केँ रहि सकैत छी ! कदाचित हमरा लोकनि एहि रंगमंच क कलाकार होइतो प्रयोगिक रूपेण साक्षात्कार नहिं भ सकैत छी ! प्रेमक दू शब्द सँ एक मात्र हम एक दोसर केँ जीत सकैत छी आ अपन मित्रता केँ अक्षुण बना केँ राखि सकैत छी !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत
27.07.2023