प्रीत
प्रीत न जाने रीत को,
प्रीत से प्रीत जो होय।
प्रीत समाहित ह्रदय बीच,
हर बंधन मुक्त होय।
प्रीत समाहित हर कण में,
प्रीत समाहित हर क्षण में।
प्रीत माँ की ममता में,
प्रीत पिता के कृन्दन में।
प्रीत प्रेमी के प्रेम में है,
प्रीत पति के बंधन में।
प्रीत नीम की कड़वाहट में,
प्रीत ही है चन्दन में।
प्रीत ही हर प्राणी में है,
प्रीत ही हर बंधन में।
प्रीत मीरा के प्रेम में थी,
जो श्याम खिंचे चले आये थे।
प्रीत हनुमत के मन में थी,
जो हृदय राम समाये थे।
प्रीत भागीरथ के हिय में थी,
जो धरा,गंगा लेकर आये थे।
प्रीत कृष्ण- सुदामा के प्रेम में थी,
जो नैनं नीर बहाये थे।
प्रीत रसखान के मन में थी,
जो श्याम ने भरमाये थे।
श्याम ढूंढन को, सखा बताकर,
काबुल से भारत आये थे।
प्रीत न जाने जात-पात,
प्रीत एक धरम होय।
प्रीत के रंग में जो रंगा,
उसपे दूजा रंग चढ़ा न कोय।