प्रीत
जीवन उपवन में बसन्त का आगाज तुम
हृदय में नव राग सा मधुर संगीत हो
प्यासे नयनों में झरता झर प्रिये तुम
मधुर स्मृतियों में सुखद अहसाह हो
नीरस जीवन में रस भर आता तुम संग
विपदाओं का हो शोर घना चाहे हर पग
सहज सुलझ जाती राहें जो अनजानी सी
विश्वास और प्रेम से तुम संग है बीती
दिया और बाती सी प्रीति चलने की यही रीति
सिंचित हो प्रेम बेल प्रेम रस भर जीवन में
तुम संग स्वप्न मेरे बन गये प्राणों के आधार
तुम शान्त सिन्धु मैं चंचल तटिनी सी धार
नभ में प्रातः की लालिमा सम भरी उमंग
संध्या में क्षितिज सा यह मधुर मिलन
विस्तृत नभ से तुम मैं धरा सम लिए आस
प्रीत जिसकी पले लिए मधुर आभास
जीवन पथ केअनुभव में नया सार यहाँ
हर तम के बाद आती नयी भोर सदा
भानु रश्मि प्रभात में जैसे बिखरे धरा पर
जीवन महके हर्ष से निखरे सदा प्रेम रस