प्रीत हमारी हो
मानो या न मानो, प्रीत हमारी हो
इश्क़ हो तुम, इश्क़ की लाचारी हो
इश्क़ की सुलगी चिंगारी
जलना दिल का हुआ जो जारी
आहोें के बादल हैं छाए
बदली बरसी ले सिसकारी
जानो या न जानो, जान हमारी हो
इश्क़ हो तुम, इश्क़ की लाचारी हो
तुम न हो तो दिन ये सूना
रातें सूनी–सूनी हैं
बारह महीने बरस जो सूना
सदियाँ सूनी–सूनी हैं
आँखों में मेरे बस गई हमारी हो
इश्क़ हो तुम, इश्क़ की लाचारी हो
चमन तुम्हारे रूप से सजता
सुमन तुम्हारे हँसी से खिलता
आँचल चंचल पवन ले उड़ता
लाख सितारे गगन है जड़ता
चाँदनी शरमाई जैसे हारी हो
इश्क़ हो तुम, इश्क़ की लाचारी हो
–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
★स्वरचित रचना
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