प्रीत में तुम सखी —-
प्रीत में तुम सखे स्वस्तिक हो गए
ये जहाँ गौण तुम प्राथमिक हो गए.
साथ जो तुम चले हाथ में हाथ ले,
रास्ते नेह के सात्विक हो गए.
था मुखर मौन ही जब कोई बात की,
तार सम्वाद के हार्दिक हो गए.
देह से हो परे श्वांस में हो पवन
रूह में मिल गए आत्मिक हो गए.
——–सुदेश कुमार मेहर