प्रीत पराई होती दुखदाई
* प्रीत पराई होती दुखदाई *
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प्रीत – पराई होती दुखदाई,
ठोकरें खाए बहुत हरजाई।
देखूं निहारूं बन कर पपैया,
कोई ना स मझे दर्द- जुदाई।
हास्य पात्र बना देती दुनिया,
बुरे वक्त का है मालिक साँई।
कोई भी रंग न मन को भाये,
दुश्मन लागे खुद की परछाई।
मनसीरत दोनोँ हाथ हैं खाली,
ज़ुल्म ढाती है ज़ुल्मी तन्हाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)