प्रीत तो है, पर भाव नहीं है l
प्रीत तो है, पर भाव नहीं है l
वृक्ष तो है, पर छाँव नहीं है ll
मन बड़ा ही असमंजस में है l
पथ है, पर दिखें गाँव नहीं है ll
विरह की, आंधी ही आंधी है l
प्रीत है, मन में घाव नहीं है ll
धक धक है ओ करवटें भी है l
न कह, बेताबी ताव नहीं है ll
विरह का, विशाल कोलाहल है l
सहज मिलन, हावभाव नहीं है ll
प्रीत छुपी, चुप ओ आलस्य है l
चाव नहीं है , लगाव नहीं है ll
प्रीत युक्ति का, जमाव नहीं है l
ओ कोई कृत्रिम दाव नहीं है ll
पाने की सहज, प्यास प्यास है l
सहज समय सही पाँव नहीं है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न