प्रीत गहरी फ़क़ीर समझेगा
2122 + 1212 + 22
प्रीत गहरी फ़क़ीर समझेगा
बहते अश्क़ों की पीर समझेगा
चदरिया झीनी-झीनी रे जिसकी
रंग पक्का कबीर समझेगा
जाने घायल की गति को ही प्रेमी
कृष्ण मीरा की पीर समझेगा
इश्क़ ताउम्र जिसको तड़पाये
इक पहेली थी, हीर समझेगा
जो न जाना है इश्क़ की बातें
वो ही अश्क़ों को नीर समझेगा