प्रीत की वर्षा
जब से तुझसे प्रीत लगाई
अमर प्रेम?की हुई सगाई।
मन से मन का मिलन हो गया
शहनाईयाँ भी देतीं बधाई।।
प्रीत की वर्षा पाकर खिलता
सुनसान मरूस्थल सा जीवन
पुलकित होते बाग – बगीचे
राधाकृष्णन सा वृन्दावन।।
जब से तुझसे प्रीत लगाई…
सर सर करते पवन देव भी
आतुर हो पहुंचे मधुवन ।
चम्पा, चमेली, लता, पता सब
मयूरा नाचें घर – आंगन ।।
जब से तुझसे प्रीत लगाई…..
उमड़ उमड़ घिरते तब घन
भाव-वृष्टि रोमांचित मन।
हर्षित होता तन ओ मन
झूला झुलाते राधा- कृष्ण।।
जब से तुझसे प्रीत लगाई…
तपन हुयी कम बैर भाव की
अन्तर में उपजा नन्दन- वन।
मेरी प्रीत तपस्या पावन
जन्म-जन्म का यह बन्धन ।।
जब से तुझसे प्रीत लगाई….
स्वरचित : डाॅ.रेखा सक्सेना