प्रीत की आग लगाई क्यो तुमने
प्रीत की आग लगाई क्यों तुमने।
आग लगाकर बुझाई क्यों तुमने।।
पास बुलाकर अपने दूर मुझे क्यों तुमने।
पहले सताई ही हूं फिर सताई क्यों तुमने।।
छोड़ दिए थे सारे त्यौहार जब मैंने।
फिर से करवाचौथ मनाई क्यों मैंने ?
चोट पहुंचा कर मलहम लगाया क्यों तुमने।
फिर इतनी गहरी चोट पहुंचाई क्यों तुमने।।
सदमे से बाहर अभी नहीं किया तुमने।
फिर से ये रहमुनाई दिखाई क्यों तुमने।।
वादा किया था हर राह पर चलगे तुमने।
फिर ये कष्ट भरी राह दिखाई क्यों तुमने।।
ये अंदर की बाते थी बताई थी तुमने।
रस्तोगी को ये बाते क्यों बताई तुमने।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम