प्रीति में कभी (गीतिका)
* प्रीति में कभी *
~~
प्रीति में कभी कहीं न हार मानते रहो।
सत्य मार्ग है यही सदा विचारते रहो।
मुश्किलें स्वयं कभी न दूर हो सके यहां।
छोड़ दें अज्ञानता यथार्थ जानते रहो।
आंधियां कभी यहां हमें डिगा सके नहीं।
कष्टपूर्ण शैल नित्य खूब लांघते रहो।
मार्ग में कहीं मिले मुसीबतों भरा हमें।
वक्त स्नेह भावना लिए निकालते रहो।
हो गया प्रभात स्वर्ण रश्मियां लिए हुए।
खत्म हो चुकी निशा उतिष्ठ जागते रहो।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
– सुरेन्द्रपाल वैद्य, २९/०४/२०२१