प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा,
भेद हमसे न कोई छुपाओ जरा।
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा॥
हम तो रहते है खोए सदा आपमें,
आप भी आंख हमसे मिलाओ ज़रा॥
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा॥
जीतकर हारना, हारकर जीतना,
उसकी आवाज से, सुमधुर गीत न।
चाहे उसमें हों लाखों बुराई मगर,
उससे अच्छा लगे कोई भी मीत ना।
उसके आने से पतझड़ भी लगता है हरा,
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा॥
उनके बिन चैन एक पल भी आए नहीं,
खोजते नैन जब वो दिखाएं नहीं।
सोचता दिल हमेशा उन्हीं की सदा,
भूल से भी जो जाता भुलाएं नहीं।
जिसने अंकुर हमें हमसे रुसवा करा,
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा॥
-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136