प्रीति के प्रिय शब्द
** गीतिका **
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क्यों पड़ी है गांठ, आओ खोल दें।
प्रीति के प्रिय शब्द, मीठे बोल दें।
हम करें नित प्यार, शिकवे छोड़ कर।
भूल कर मतभेद, मिश्री घोल दें।
जब घुटन का वक्त, बीता जा रहा।
स्नेह के मृदु स्पर्श, अब अनमोल दें।
सत्य कर स्वीकार, बढ़ते हो कदम।
और धन से प्यार, को मत तोल दें।
स्वच्छ हो जलवायु, सुन्दरता भरा।
अब प्रदूषण मुक्त, नव भूगोल दें।
हार तक कर बैठ, अब जाना नहीं।
दूर हों अवरोध, अब हिल्लोल दें।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)