*प्रीतिभोज (हास्य व्यंग्य)*
प्रीतिभोज (हास्य व्यंग्य)
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विवाह के निमंत्रण पत्र की डिटेल में कौन जाता है ! अब आप किसी से पूछिए कि भाई जिस शादी में आए हो उसमें लड़की वाले कहाँ के रहने वाले हैं ,तो सौ में पिच्चानवे लोग यही कहेंगे कि हमें नहीं मालूम । यद्यपि निमंत्रण पत्र में ज्यादातर मामलों में यह लिखा रहता है कि लड़की वाले कहाँ के हैं, लेकिन पढ़ता कौन है? जिसका संबंध दूल्हे से है ,उसे दूल्हे के पिता के नाम से कोई मतलब नहीं और जिसका संबंध दूल्हे के पिता से है , उसे दूल्हे के नाम से कोई मतलब नहीं होता ।
यद्यपि विवाह को परिभाषित करते समय निमंत्रण पत्र में बहुत लच्छेदार भाषा का प्रयोग किया जाता है । कई लोग तो चार-चार निमंत्रण पत्र सामने रख कर बैठते हैं और फिर उसके बाद एक भारी-भरकम निमंत्रण पत्र तैयार होता है । ऐसा कि जिसे पढ़कर पाठक के ऊपर एक अच्छा प्रभाव पड़े और वह प्रभावित हो सके। कई बार इतनी कठिन भाषा और शब्दों का प्रयोग कर लिया जाता है कि घर के ही चार लोगों को पूछना पड़ता है कि भैया यह जो निमंत्रण पत्र छपा है , इसमें अमुक- अमुक शब्दों का अर्थ क्या है ? निमंत्रण पत्र बैठकर अखबार की तरह कोई नहीं पढ़ता । बस दिन नोट कर लिया ,कहाँपर है ,निमंत्रण पत्र किसके यहाँ से आया है । इस तरह काम चल जाता है ।
फिर भी निमंत्रण पत्र सुंदर और आकर्षक बनाने का कार्य जोरों पर चल रहा है । निमंत्रण पत्रों में कागज, गत्ता आदि का बेहतरीन उपयोग होता है ।कई निमंत्रण पत्र तो इतने भारी- भरकम होते हैं कि उन्हें हाथ में उठाओ तो लगता है कहीं यह मिठाई का डिब्बा तो नहीं है ।
निमंत्रण पत्रों से इस बात का भी पता चलता है कि प्रीतिभोज कितना शानदार होगा । निमंत्रण पत्र फाइव स्टार है तो प्रीतिभोज भी फाइव स्टार होता है । प्रीतिभोजों में जो फाइव स्टार होते हैं ,उनमें खाने के इतने आइटम होते हैं कि व्यक्ति सबको चखकर नहीं देख सकता । व्यक्ति ज्यादातर आइटम चखने का प्रयत्न करता है। चखने का प्रयत्न अर्थात दोना भर कर लेता है ।आधा खाता है, आधा फेंक देता है। दुर्भाग्य से अभी तक शादियों में खाने के स्टालों पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हुई है कि चखने के लिए चीज मिल सके । जो भी वस्तु माँगो, वह भरपेट खाने के लिए मिलती है। यह विचारणीय विषय है कि एक पेट कितनी वस्तुएँ खा सकता है? इसलिए थोड़ा-थोड़ा चखकर बाकी देखने का चलन चलने लगा है।
कई लोग खाने में प्लेट हाथ में नहीं लेते। वह केवल मूँग की दाल ,टिकिया और गोलगप्पे आदि खाकर अपना काम चला लेते हैं । इसके पीछे भी उदारता कम, मजबूरी ज्यादा है ।
कई लोग खाना खाने से पहले आयोजकों को लिफाफा थमा देते हैं तथा अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ।कई लोग पहले खाना खाते हैं और उसके बाद चलते समय लिफाफा देते हैं । यद्यपि लिफाफा पहले से बना- बनाया होता है और उसमें कोई परिवर्तन भोजन की गुणवत्ता के आधार पर न तो किया जाता है और न ही किया जाना संभव है । लिफाफा समय के साथ साथ अधिक धनराशि का होता चला जा रहा है। जो लोग पर्याप्त धनराशि का लिफाफा नहीं देते हैं ,उनके प्रति आयोजकों का स्थाई रूप से उपेक्षा का भाव बन जाता है। इससे बचने के लिए कई बार लोग प्रीतिभोजों में जाने से ही कन्नी काटने लगते हैं। विवाह समारोह शहर से बाहर जाने पर लिफाफे के साथ-साथ आने-जाने का खर्च भी जुड़ जाता है, जिसके कारण प्रीतिभोज मँहगा पड़ता है। अतः कई लोग रिश्तेदारी में जाने की बजाए बाद में यह टेलीफोन करना उचित समझते हैं कि अंत समय पर काम आ गया और जाते-जाते प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा । सब लोग सब की परेशानियाँ समझते हैं ।
प्रीतिभोजों में अक्सर लोग इधर का सामान उधर फॉरवर्ड करते रहते हैं । यह काम बर्थडे में बहुत होता है। इससे बचने के लिए अब निमंत्रण पत्रों में “नो गिफ्ट बॉक्स” लिखवाए जाने का चलन शुरू होने लगा है। अर्थात आयोजक नहीं चाहता कि आप इधर-उधर के फालतू सामानों से उसके घर का कमरा भर दें । “नो गिफ्ट बॉक्स” लिखने पर केवल लिफाफा देने का ही विकल्प रहता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451