प्रीतम से मिलन
बड़ा अजीब था
वो तेरा पहली बार मिलना
गुफ्तगू,इधर-उधर की बातें
धीरे-धीरे मुलाकात बड़ी
फिर एहसास बड़े
अचानक एक दिन
हाथ तेरा ले हाथों में
उड़ चली मुक्त गगन में
डर न खौफ कोई
बस तृप्ति का
कभी न खत्म होने वाला एहसाह
जो तेरे आलिंगन में था
आज भी है
भीतर मेरे वो
अपना घर बसाए
झांक कर कोने से दिल के
पोछ लेता है
आँसुओं को मेरे
सोख लेता नमी
मेरी पलकों से
तेरा वही सुखद साथ।।
आरती लोहनी
मोहाली,पंजाब