प्रीतम दोहावली
परिवर्तन स्वीकार कर, काल चाल परिणाम।
खट्टा-मीठा जो मिले, समझ समय पैग़ाम।।//1
भूतकाल से सीखिए, आशा भविष्य काल।
वर्तमान विश्वास का, उचित यही सुरताल।।//2
नेक कथन उर्जा भरे, मिटा हृदय का पाप।
दीप जले हो रोशनी, दूर करे संताप।।//3
किससे बढ़कर कौन है, उत्तर देगा वक़्त।
बड़े बोल तुम बोलकर, कम करते तन रक्त।।//4
राजनीति में सब रचें, विजय भरे षड्यंत्र।
सोच बढे जो देशहित, सौंपो उसको तंत्र।।//5
सुखी नहीं संसार में, जिसके चलते साँस।
पतझड़ से लाचार है, सच में हर मधुमास।।//6
प्रीतम तेरे प्रेम का, होता है सत्कार।
तभी हमेशा ही रहे, ख़ुशी आपके द्वार।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’