प्रीतम दोहावली
दबी हुई आवाज़ को, लेना समझ गुलाम।
ताक़त है आत्मा मरी, उसको नहीं सलाम।।//1
होश नहीं जिसको कभी, उसका नहीं प्रभात।
तम के आगे जो झुका, उसकी क़िस्मत रात।।//2
स्वयं न बदला जो कभी, रिपु उसके हालात।
झुक हरपल से वो करे, इज़्ज़त खोकर बात।।//3
सुंदरता के प्रेम में, मनुज गुणों का ह्रास।
मार आत्म को खत्म हो, हृदय बसा विश्वास।।//4
गीत लिखे सब प्रीत के, गए घृणा से हार।
मूर्ख बने राजा जहाँ, न्याय नहीं उस द्वार।।//5
चाँद ईद शरमा गया, गिरगिट नभ के गर्भ।
झूठों ने सच के जहाँ, बदल दिए संदर्भ।।//6
प्रीतम तेरे प्रेम में, सत्य हुआ आभास।
तब से तुम मेरे लिए, रब से भी हो खास।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’