प्रीतम दोहावली
ज़ख़्म निवारण हेतु ज्यों, मरहम है अनिवार्य।
सफल ज़िंदगी हेतु त्यों, हँसकर करना कार्य।।//1
बिना किए कुछ भी नहीं, करो मिलेगा खास।
मिले सफलता या मिले, अनुभव का अहसास।।//2
झूठा किया घमंड हर, छीनेगा मुस्क़ान।
लाश सजाने से कभी, मिले नहीं है जान।।//3
जोड़-जोड़ कर ख़ुद जुड़ा, जीवन रहा उदास।
सागर किसकी कब कहाँ, मिटा सके है प्यास।।//4
छोटी जिसकी सोच हो, घटे हमेशा मान।
मानव खरपतवार पर, दिखा नहीं कुर्बान।।//5
फिरे बात कहकर कभी, समझो मत इंसान।
फूल शूल बदलें नहीं, फ़ितरत निज अरमान।।//6
सबके अपने शौक़ हैं, सबकी निज पहचान।
प्रीतम दोहा शौक़ पर, दिल से हूँ कुर्बान।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’