प्रीतम दोहावली
सफ़र बहुत आसान है, होना न परेशान।
सोच समझ कर चल सदा, लिए उचित तू ज्ञान।।//1
नयी बात तू सीखिये, रखिए नव अरमान।
निज पर का कल्याण हो, रहे उसी पर ध्यान।।//2
जैसे को तैसा मिले, कथन यही सच मीत।
छल करके छलना पड़े, यही जगत् की रीत।।//3
बुरा कभी मत मानिए, सुनकर तू बद बात।
लोहे को सोना करो, सुखमय हों हालात।।//4
रीति नीति हद सोचकर, कर ज़ीस्त का पान।
इसी कर्म के धर्म से, हो जग में गुणगान।।//5
बड़ा समझ ख़ुद को रहा, इस जग में अनजान।
कद रखिए इंसान का, ज्ञान यही वरदान।।//6
सबके अपने कार्य हैं, भाग्य भिन्न मुस्क़ान।
घृणा किसी से मत करो, दो सबको सम्मान।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’