प्रीतम दोहावली
छिपा दोस्त से कह न सब, ख़ुद से तब इंसाफ़।
दोस्त सदा ही दोस्त हो, समझ विचार ख़िलाफ़।।//1
मेरे हिस्से दिन हुआ, तेरे हिस्से रात।
दोनों पूरक सत्य ये, नहीं जलन की बात।।//2
रिश्तों की कर क़दर तू, तभी क़दर हक़दार।
पैसे में मिलते नहीं, स्नेह प्रेम अरु प्यार।।//3
हृदय किसी का तोड़कर, मिले हमेशा ताक।
टूटा पत्ता शाख से, उड़े मिले बस ख़ाक।।//4
झूठ बोलना छोड़िए, ख़ुशियाँ झूमें द्वार।
सच की क़ीमत सूर्य-सम, रोशन हो संसार।।//5
वशीभूत हो स्वार्थ के, नैतिकता दें त्याग।
उनका जीवन मैं कहूँ, गले टंगा ज्यों नाग।।//6
शील बिना हर ज्ञान की, होती देखी हार।
रावण हो या कंश हो, मरा दंभ की मार।।//7
आर. एस. “प्रीतम”